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In this classic work, the learned author has given a clear exposition of partnership law taking note of all recent developments in this field.
वर्तमान समय में व्यापारिक कार्यवाहियों के संचालन हेतु भागीदारी के महत्त्व को अस्वीकार नहीं किया जा सकता। आपसी विश्वास एवं भरोसे का ये बहुत ही साधारण प्रकृति का संगठन है। इस विधि को अत्यंत सरल एवं सहज ढंग से विधि क्षेत्र के विख्यात लेखक डॉ. अवतार सिंह जी ने इस पुस्तक में प्रस्तुत किया है। पुस्तक के इस सातवें नवीनतम संशोधित संस्करण में ‘सीमित दायित्व भागीदारी’(Limited Liability Partnership) को भी दूसरे खण्ड में शामिल किया गया है साथ ही नवीन न्यायिक निर्णयों को भी यथास्थान प्रमुखता देने से पुस्तक की उपादेयता और भी बढ़ गई है। भागीदारी विधि के साथ-साथ सीमित दायित्व भागीदारी अधिनियम का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है यह एक ऐसी वैकल्पिक कार्पोरेट व्यापार की व्यवस्था है जिसमें सीमित दायित्व भागीदारी का लाभ तो है ही, इसके सदस्यों को पारम्परिक समझौते के आधार पर भागीदारी के तौर पर आंतरिक संरचना के गठन का लचीलापन भी प्राप्त होता है। पुस्तक के द्वितीय भाग में इसकी विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुए विद्वान लेखक द्वारा धारा क्रमानुसार सम्पूर्ण अधिनियम का सारगर्भित अवलोकन किया गया है।
निस्संदेह पुस्तक प्रत्येक पाठक वर्ग चाहे वो अधिवक्ता हों अथवा उद्यमी या फिर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे छात्र, हर एक के लिए उपयोगी साबित होगी।
1. प्रारंभिक
2. भागीदारी की परिभासा तथा प्रकृति
3. भागीदारो के एक दूसरे के प्रति सम्बन्ध
4. पर - व्यक्तियों से भागीदारो के सम्बन्ध
5. अन्दर आने वाले और बहार जाने वाले भागीदार
6. फर्म का विघटन
7. फर्मो का राजिस्त्रसन
8. अनुपूरक
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